Friday 19 April 2019

"ख़ूबसूरत खरपतवार इंसानियत"


"ख़ूबसूरत खरपतवार"

"इंसानियत ख़ूबसूरत खरपतवार की तरह
चाहे जहाँ उग तो आती है
पर जब ये हमारे स्वार्थ की फसल
के हिस्से की खाद खाती है
मेढें पार करके मुँह चिढ़ाने लगती है 
पहले उखाड़ी फिर सुखाई फिर जलाई जाती है
हमारे स्वार्थ की फसल न केवल खाद, उसकी राख भी खा जाती है
इंसानियत की कीमत पर स्वार्थ की फसल उग जाती है
ये इंसानियत, कमबख़्त जाने कैसे बची रह जाती है
बारिशों फुहारों के छूते ही जाग जाती है
उसकी ज़िद हमारी कोशिश जारी है
या हमारी ज़िद उसकी कोशिश जारी है"

~ ध्रुव प्रवाह (GJ) 

"आत्मीयता"



"आत्मीयता"

अपने रिश्तों में आत्मीयता मुझे कभी मिली नहीं
किसी के विवाहोत्सव या जन्मोत्सव में सम्मिलित होना
किसी की अर्थी को कांधा देना, दाहसंस्कार का साक्षी होना
आपके लिए रिश्तेदारी होगी मेरे लिए "नहीं"
कुछ अपवाद भी हैं शत प्रतिशत ऐसा नहीं
किसी संकटग्रस्त प्रजाति की तरह दोनों (आत्मीयता + रिश्तेदारी) साथ दिख जाते हैं कभी-कभी कहीं-कहीं

आत्मीयता के बिना रिश्ते निष्प्राण शरीर हैं या नहीं?
मान-अपमान, लाभ-हानि सांसारिक वस्तुओं से अधिक
कुछ नहीं कुछ नहीं
जब तक आत्मा शरीर में थी, आप इस बात को समझे नहीं
किसी के जीते जी आपने उसे याद किया नहीं,
उसके गले लगके आप रोये नहीं,
प्रेम के दो शब्द कहे नहीं सुने नहीं,,
शरीर और स्मृतियाँ जो शेष हैं वो तो माँ भाई बहन नहीं
पञ्च भूतों में मिलने को आतुर शव, सुन समझ सकता नहीं
तुम्हारी आत्मीयता अब उसकी ज़रुरत नहीं
पर तुम जताओगे, मानोगे नहीं
जो अपने काम का नहीं, वही दूसरों को देते आये हो, तुम सुधरोगे नहीं 

~ ध्रुव प्रवाह (GJ) ०२/०२/२०१५, सोमवार, ११:२५ सुबह 

'ओ' मेरी बेटी



'ओ' मेरी बेटी
जब रसोई में, अपने छोटे छोटे हाथों से
आटे का गुड्डा, आटे का चूहा बनाती हो तुम
अपने से बड़े बर्तन उठाती, जमाती हो तुम
चाहे माँ तुम्हारी हैरान हो
तुम्हारी इस मदद से परेशान हो
बहुत खुश होता है रब

सूखे हुए कपड़ों को डोर से खींच कर
जब फर्श पर इकठ्ठा करती हो तुम
उनकी तहें बनाने की नाकामयाब कोशिशें, दिल से करती हो तुम
भले उनमें हज़ार सलवटें आएं
चाहे वो मैले हो जाएं
दादी डांटे माँ चिल्लाये
उनकी हमेशा मदद ही करती हो तुम
एक प्यारी सी मुस्कुराहट बिखेरकर
सारे गुनाहों से बरी हो जाती हो तुम

'ओ' मेरी बेटी
किसे पता तुम्हे और तराशकर,
रब बनादे तुम्हे ऐसा, कि दुनिया भर की माँओं को अपना समझ सको तुम
अपनी ही नहीं सारी माँओं को खुश रख सको तुम

'ओ' मेरी बेटी
तुम्हारी अच्छाइयां तुम्हारी नेकी,
पहचान है, पहचान हो पापा की
मेरी गुड़िया, तुम जान लो अपनी ताक़त को
मुझे यक़ीन है कि, एक दिन
तुमपे नाज़ होगा दुनिया के हर पापा को

~ ध्रुव प्रवाह (GJ) मेरी पिंचू उर्फ़ नीतिज्ञा के लिए

"बहुत पहले की बात है"


" बहुत पहले की बात है "

बहुत पहले की बात है
कुछ ऐसे ही शुरू करती थी माँ 
सुन्दर राजकुमारी, शक्तिशाली राक्षस 
भयानक जंगल, बोलते पत्थर 
जादुई घोड़ा, तिलिस्मी तलवार 
बहादुर गरीब लड़का मुझे ही बनाती थी माँ 
जो हरा दिया करता था राक्षस को
राजकुमारी से मेरा ब्याह करवाती थी माँ 
फिर क्या हुआ फिर क्या हुआ ...
एक नया राक्षस ले आती थी माँ 
सच को हमेशा जिता देती थी माँ  
मुझमे आत्मविश्वास जगाकर 
मुझे साहसी बनाकर 
सुला देती थी माँ 

~ ध्रुव प्रवाह (GJ) ५ अगस्त २०१४(संध्या ७ :१५ बजे) 

"मेरी हमसफ़र"


"मेरी हमसफ़र"

मेरी हर ख़ुशी में शरीक हो
हर मुश्किल में वो मेरे करीब हो 
वो मेहताब भले ना हो आफताब भी ना हो 
पर उसके रहने से घर का हर कोना रोशन हो
कुछ इस तरह उसका मेरा किस्सा हो
मैं चन्दन वो मेरी ही खुशबु हो

~ ध्रुव प्रवाह (GJ)

"ख़ूबसूरत खरपतवार इंसानियत"

"ख़ूबसूरत खरपतवार" "इंसानियत ख़ूबसूरत खरपतवार की तरह चाहे जहाँ उग तो आती है पर जब ये हमारे स्वार्थ की फसल के हिस्से की ख...