Friday 19 April 2019

'ओ' मेरी बेटी



'ओ' मेरी बेटी
जब रसोई में, अपने छोटे छोटे हाथों से
आटे का गुड्डा, आटे का चूहा बनाती हो तुम
अपने से बड़े बर्तन उठाती, जमाती हो तुम
चाहे माँ तुम्हारी हैरान हो
तुम्हारी इस मदद से परेशान हो
बहुत खुश होता है रब

सूखे हुए कपड़ों को डोर से खींच कर
जब फर्श पर इकठ्ठा करती हो तुम
उनकी तहें बनाने की नाकामयाब कोशिशें, दिल से करती हो तुम
भले उनमें हज़ार सलवटें आएं
चाहे वो मैले हो जाएं
दादी डांटे माँ चिल्लाये
उनकी हमेशा मदद ही करती हो तुम
एक प्यारी सी मुस्कुराहट बिखेरकर
सारे गुनाहों से बरी हो जाती हो तुम

'ओ' मेरी बेटी
किसे पता तुम्हे और तराशकर,
रब बनादे तुम्हे ऐसा, कि दुनिया भर की माँओं को अपना समझ सको तुम
अपनी ही नहीं सारी माँओं को खुश रख सको तुम

'ओ' मेरी बेटी
तुम्हारी अच्छाइयां तुम्हारी नेकी,
पहचान है, पहचान हो पापा की
मेरी गुड़िया, तुम जान लो अपनी ताक़त को
मुझे यक़ीन है कि, एक दिन
तुमपे नाज़ होगा दुनिया के हर पापा को

~ ध्रुव प्रवाह (GJ) मेरी पिंचू उर्फ़ नीतिज्ञा के लिए

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